हिंदू धर्म का सबसे महान पुराण कौनसा है जिसे सभी को पढ़ना चाहिए?

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सनातन धर्म में बहुत सारे शास्त्र है — 18 पुराण, 4 वेद, 2 इतिहास (रामायण और महाभारत) आदि।

आज के समय में इतना सब पढ़ना थोड़ा मुश्किल है। अगर सिर्फ़ पुराणों की ही बात करें तो सब पुराणों की श्लोक संख्या कुल मिलाकर 4,00,000 होती है। तो और क्या उपाय है जिससे कि सभी प्रमुख शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया जा सके?

तो विभिन्न पुराण इस बात की पुष्टि करते हैं कि सिर्फ़ श्रीमद् भागवत महापुराण से भी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति प्राप्त की जा सकती हैं। इसकी तो बात ही क्या, मोक्ष तक प्राप्त किया जा सकता है!
शैव पुराण हो या वैष्णव पुराण हो – दोनों एक मत हो कर इसकी प्रशंसा करते हैं।

श्रीमद् भागवत महापुराण में 18,000 श्लोक हैं। इसमें राजा परीक्षित (अर्जुन के पौत्र) और श्री शुकदेवजी (वेद व्यास के पुत्र) का संवाद है।

पूर्वकाल में महाभारत (गीता) की रचना और वेद के विभाग करने के बाद भी महर्षि व्यास को संतोष नहीं हुआ। तब नारद जी ने उनसे कहा की — “व्यासजी! आपने भगवान्‌ के निर्मल यशका गान नहीं किया⁠। आपने धर्म आदि पुरुषार्थों का जैसा निरूपण किया है, भगवान् श्रीकृष्ण की महिमा का वैसा निरूपण नहीं किया” तब उन्होंने इस भागवत महापुराण निर्माण किया।

इसमें बारह स्कन्ध है जिसमें अलग अलग अध्याय हैं। इसमें भगवान विष्णु के 24 अवतारों की कथा है, दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरूओें की कथा है, प्रकृति के 24 तत्वों की बात है। दसवाँ स्कन्ध पूरा का पूरा कृष्ण अवतार पर है।

भक्ति के 9 प्रकार बताए गए है जिसे नवधा भक्ति कहते हैं

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

(1) भगवान् ‌के गुण-लीला-नाम आदि का श्रवण, (2) उन्हीं का कीर्तन, (3) उनके रूप-नाम आदि का स्मरण, (4) उनके चरणों की सेवा, (5) पूजा-अर्चा, (6) वन्दन, (7) दास्य, (8) सख्य और (9) आत्मनिवेदन⁠

राजा परीक्षित की आयु के केवल सात दिन बचे थे। तब उन्होंने श्री शुकदेव जी से सात दिन तक श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण किया और सातवें दिन मोक्ष प्राप्त किया।

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पद्म पुराण कहता है कि — बहुत-से शास्त्र और पुराण सुनने से क्या लाभ है, इससे तो व्यर्थ का भ्रम बढ़ता है⁠। मुक्ति देने के लिए तो एकमात्र भागवत पुराण ही गरज रहा है।

यह भागवत पुराणों का तिलक है⁠। इसकी कथा वेद और उपनिषदों के सार से बनी है। भागवत पुराण के रूप में साक्षात् श्रीकृष्णचन्द्र ही विराजमान हैं।

स्कन्द पुराण (जो कि एक शैव पुराण है) कहता है कि — अट्‌ठाईसवें द्वापर के अन्त में जब भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं ही सामने प्रकट होकर अपनी मायाका पर्दा उठा लेते हैं, उस समय जीवोंको उनका प्रकाश प्राप्त होता है।

अट्‌ठाईसवें द्वापर के अतिरिक्त समय में यदि कोई श्रीकृष्णतत्त्व का प्रकाश पाना चाहे तो उसे वह भागवत पुराण से ही प्राप्त हो सकता है
भागवत पुराण कहता है कि — संतों की सभा में तभी तक दूसरे पुराणों की शोभा होती है, जब तक सर्वश्रेष्ठ स्वयं श्रीमद् भागवत महापुराण के दर्शन नहीं होते।

इसकी तुलना में और कोई भी पुराण नहीं है। जैसे नदियों में गंगा, देवताओं में विष्णु और वैष्णवों में श्रीशंकरजी सर्वश्रेष्ठ हैं, वैसे ही पुराणोंमें श्रीमद्भागवत है। यह समस्त वेदों का सार है।

सबसे पहले ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर श्रीभगवान् ने अपने नाभि-कमल पर स्थित ब्रह्माजी को चार श्लोकों के रूप में (जिसे चतुःशलोकी भागवत कहते है) इस पुराण का उपदेश दिया था। फिर ब्रह्माजी ने इस विश्व की रचना की।

ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद को उपदेश किया और नारदजी ने व्यासजी को। तदनन्तर व्यासजी ने शुकदेवजी को और श्री शुकदेवजी ने राजर्षि परीक्षित्‌ को उपदेश किया।

कलियुग की शुरुआत में जब भक्ति और उसके पुत्र – ज्ञान और वैराग्य जर्जर हो गये थे तब नारदजी ने वेदध्वनि, वेदान्तघोष और बार-बार गीता पाठ सुनाया पर फिर भी वह तीनों नहीं जगाये जा सके।

उसके बाद सनकादि (ब्रह्माजी के 4 पुत्र) ने नारदजी और ऋषि-मुनि को भागवत पुराण सुनाया। जिस समय सनकादि मुनीश्वर भागवत पुराण के सप्ताहश्रवण की महिमा का बखान कर रहे थे, उस समय सभा में एक बड़ा आश्चर्य हुआ।

वहाँ तरुणावस्था को प्राप्त हुए अपने दोनों पुत्रों को साथ लिये विशुद्ध प्रेमरूपा भक्ति बार-बार ‘श्रीकृष्ण! गोविन्द! हरे! मुरारे! हे नाथ! नारायण! वासुदेव!’ आदि भगवन्नामों का उच्चारण करती हुई अकस्मात् प्रकट हो गयी! उस समय अपने भक्तों के चित्तमें अलौकिक भक्ति का प्रादुर्भाव हुआ देख भक्तवत्सल श्रीभगवान् अपना धाम छोड़कर वहाँ पधारे।

पद्म पुराण के अनुसार जब भगवान् श्रीकृष्ण इस धरा को छोड़कर अपने नित्यधामको जाने लगे तब उद्धवजी ने उनसे कहा कि आपका वियोग होने पर भक्तजन पृथ्वी पर कैसे रह सकेंगे! तब भगवान्‌ ने अपनी सारी शक्ति भागवत पुराण में रख दी; वे अन्तर्धान होकर इस भागवत पुराण में प्रवेश कर गये। इसलिये यह भगवान्‌ की साक्षात् शब्दमयी मूर्ति है⁠।

इसके सेवन, श्रवण, पाठ अथवा दर्शन से ही मनुष्यके सारे पाप नष्ट हो जाते है। हजारों अश्वमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ इस भागवत पुराण कथा का सोलहवाँ अंश भी नहीं हो सकते। संसारमें भागवत पुराण की कथा का मिलना अवश्य ही कठिन है, जब करोड़ों जन्मों का पुण्य होता है तभी इसकी प्राप्ति होती है।

भागवत पुराण का सप्ताहश्रवण यज्ञ से बढ़कर है, व्रत से बढ़कर है, तप से कहीं बढ़कर है⁠। तीर्थसेवन से तो सदा ही बड़ा है, योग से बढ़कर है— यहाँ तक कि ध्यान और ज्ञान से भी बढ़कर है, अजी! इसकी विशेषता का कहाँ तक वर्णन करें, यह तो सभी से बढ़-चढ़कर है!

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