प्रकृति के तीन गुण कौनसे है ?

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इस लेख में हम जानेंगे कि मनुष्य न चाहते हुए भी पाप करने के लिए प्रेरित क्यों होता है?, चार वर्णों की रचना किसने और किस आधार पर की?, प्रकृति के तीन गुण कौनसे है और उनका हमारे जीवन पर कैसा और कितना प्रभाव है?

प्रकृति के गुणों को कैसे लाँघा जा सकता है, जो इन्हें लाँघ जाता है उसका आचरण कैसा होता है? प्रकृति के गुणों के अनुसार व्यक्ति कैसा भोजन करता है और कैसा सुख भोगता है?

चलिए, शुरू करते है।

1. प्रकृति के तीन गुण कौनसे है और उनका हमारे जीवन पर कैसा और कितना प्रभाव है?

यह भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है — सतो, रजो तथा तमोगुण।

समस्त कार्यों में प्रकृति के तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य कोई कर्ता नहीं है। जीव अहंकार के कारण अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जब कि वास्तव में वे प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा सम्पन्न किये जाते है।

प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना पड़ता है।

भगवान विष्णु की शक्ति के द्वारा यह सारे गुण प्रकट होते है। श्री भगवान् प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं है, अपितु वे श्री भगवान् के अधीन है।

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सारा संसार प्रकृति के तीन गुणों से मोहित है। इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त हो।

प्रकृति के तीन गुणों वाली भगवान नारायण की इस दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है किन्तु जो उनके शरणागत हो जाते है, वे सरलता से इसे पार कर जाते है।

चलिए, अब सतो, तमो और रजोगुण के बारे विस्तार से समझते है।

सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध है। यह मनुष्यों को सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है। सतोगुण सुख तथा ज्ञान के भाव से बाँधता है।

सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है। सतोगुणी व्यक्ति देवताओं को पूजते है। सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते है।

रजोगुण की उत्पत्ति असीम आकांक्षाओं से होती है। रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है। इससे लोभ, अत्यधिक आसक्ति तथा अनियन्त्रित इच्छा उत्पन्न होते है। रजोगुणी व्यक्ति यक्षों व राक्षसों की पूजा करते है। रजोगुणी व्यक्ति इसी पृथ्वीलोक में रह जाते है।

तमोगुण की उत्पत्ति अज्ञान से होती है। तमोगुण मनुष्य को पागलपन से बाँधता है। तमोगुण से पागलपन, आलस, नींद तथा मोह उत्पन्न होते है। तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते है। तमोगुणी व्यक्ति नीचे नरक लोकों को जाते है।

कभी-कभी सतोगुण रजोगुण तथा तमोगुण को परास्त करके प्रधान बन जाता है तो कभी रजोगुण सतो तथा तमोगुणों को परास्त कर देता है और कभी तमोगुण सतो तथा रजोगुणों को परास्त कर देता है।

2. प्रकृति के गुणों को कैसे लाँघा जा सकता है, जो इन्हें लाँघ जाता है उसका आचरण कैसा होता है?

जो व्यक्ति श्री भगवान् के प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति करता है वह तुरन्त ही प्रकृति के गुणों को लाँघ जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर तक पहुँच जाता है।

उसका आचरण — सुख तथा दुख को एक समान मानना, शत्रु तथा मित्र के साथ सामान व्यवहार करना, प्रशंसा तथा बुराई, मान तथा अपमान में समान भाव से रहना, मिट्टी के ढेले, पत्थर एवं स्वर्ण के टुकड़े को समान दृष्टि से देखना, प्रकाश, आसक्ति तथा मोह के उपस्थित होने पर न तो उनसे घृणा करना और न लुप्त हो जाने पर उनकी इच्छा करना, यह जानकर कि केवल गुण ही क्रियाशील हैं, उदासीन तथा दिव्य बना रहना, सारे भौतिक कार्यों का परित्याग कर देना।

3. मनुष्य न चाहते हुए भी पाप करने के लिए प्रेरित क्यों होता है?

जब अर्जुन ने यही प्रश्न भगवान् श्री कृष्णचन्द्र से गीता में पूछा तो भगवान् पुंडरीकाक्ष ने कहा — हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है।

4. चार वर्णों की रचना किसने और किस आधार पर की?

प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार भगवान कमलनयन द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गये है।

जो सतोगुणी है वे ब्राह्मण, जो रजोगुणी है वे क्षत्रिय और जो रजोगुणी और तमोगुणी दोनों है, वे वैश्य कहलाते है तथा जो तमोगुणी हैं वे शुद्र कहलाते है।

5. प्रकृति के गुणों के अनुसार व्यक्ति कैसा भोजन करता है और कैसा सुख भोगता है?

सतोगुणी व्यक्तियों को सात्त्विक भोजन प्रिय होता है और वह भोजन आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है।

रजोगुणी व्यक्तियों को अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे,शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन प्रिय होते है। ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले है।

तमोगुणी व्यक्तियों को खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया, स्वादहीन, सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन प्रिय होता है,जो तामसी होते हैं।

जो सुख प्रारम्भ में विष जैसा लगता है, लेकिन अन्त में अमृत के समान है और जो मनुष्य में आत्म-साक्षात्कार जगाता है, वह सात्त्विक कहलाता है। जो सुख इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है और प्रारम्भ में अमृततुल्य तथा अन्त में विषतुल्य लगता है, वह रजोगुणी कहलाता है। जो सुख प्रारम्भ से लेकर अन्त तक मोहकारक है और जो निद्रा, आलस्य तथा मोह से उत्पन्न होता है, वह तामसी कहलाता है।

(इस लेख का स्रोत भगवद् गीता है)

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