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पाँच पांडव इंद्र के अंश थे और द्रौपदी इंद्र की पत्नी शची थी। कैसे? चलिए, वह समझते हैं।
एक बार जब गुरु बृहस्पति (देवताओं के गुरु) देवताओं से रूष्ट हो गए ऐसे समय देवासुर संग्राम आरंभ हो गया।
देवताओं ने विश्वरूप (विश्वरूप त्वष्टा प्रजापति के पुत्र का नाम है और त्वष्टा द्वादश आदित्यों में से एक है) को अपना गुरु बनाया।
उस युद्ध में विजयी होने के उपरांत देवताओं ने नारायण कवच का यज्ञ करवाया जिसमें इंद्र ने देखा कि विश्वरूप देवताओं के लिए उच्च स्वर मैं बोलते थे लेकिन धीरे से असुरों के लिए भी आहुति देते थे।
ये देख इंद्र ने विश्वरूप का वध कर दिया।
इस ब्राह्मण वध के पाप से उनका तेज निकल कर धर्मराज को चला गया था उस तेज को स्वयं धर्मराज ने कुन्ती के गर्भ में स्थापित किया। उसी से महातेजस्वी राजा युधिष्ठिर का जन्म हुआ।
इंद्र को मारने के लिए त्वष्टा प्रजापति ने वृत्रासुर को उत्पन्न किया। इंद्र ने सप्तर्षियों के द्वारा उससे संधि कर ली पर बाद में उन्होंने संधि तोड़ वृत्रासुर का वध कर दिया।
ऐसे में उसका बल वायुदेव को चला गया वहाँ से कुंती को चला गया और उससे भीम का जन्म हुआ।
इंद्र के आधे अंश से अर्जुन का जन्म हुआ।
अहिल्या से छल करने पर उनका रूप अश्विनीकुमारों को चला गया। वहाँ से मादरी को गया। उससे नकुल सहदेव का जन्म हुआ।
पर देवताओं ने इन्द्र का तेज कुन्ती और मादरी में क्यों डाला? चलिए वह समझते हैं।
असल में इन्द्र अपने धर्म, तेज, बल और रूप से वंचित हो गए थे। इसलिए दैत्यों ने उन्हें जितना चाहा और अत्यंत बलशाली दैत्य भी उत्पन्न हुए।
इस वजह से उन दैत्यों के भार से पृथ्वी बहुत पीड़ित हुई। पृथ्वी ने देवताओं से सहायता मांगी।
प्रजाजनों का उपकार और पृथ्वी के भार का अपहरण करने के लिए देवताओं ने इन्द्र का तेज कुन्ती और मादरी में क्यों डाला।
इस तरह पाँच पांडव इंद्र के अंश थे।
इंद्र की पत्नी शची द्रौपदी बन अग्नि से उत्पन्न हुई।
(इस लेख का स्रोत मार्कंडेय पुराण और भागवत पुराण है)
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