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श्रीमद्भागवत महापुराण में प्रलय चार प्रकार के बताए गए है।
१. नैमित्तिक प्रलय — यह हर कल्प के अन्त में होता है।
२. प्राकृतिक प्रलय — यह ब्रह्माजी की आयु समाप्त हो जाने पर होता है।
३. नित्य प्रलय — व्यक्ति जन्म लेता है और फिर उसकी मृत्यु होती है, उसको नित्य प्रलय कहते है।
४. आत्यन्तिक प्रलय — आत्मा के माया से मुक्त होने को अर्थात् मोक्ष को आत्यन्तिक प्रलय कहते है।
लोग कहते हैं कि जिस समय प्रलयने सारे जगत को निगल लिया था, उस समय भी मार्कण्डेय ऋषि बचे रहे। पर वह तो इसी कल्प में उत्पन्न हुए है और इस कल्प में कोई प्रलय नहीं हुआ है तो यह बात कैसे सत्य हो सकती है कि जिस समय सारी पृथ्वी प्रलयकालीन समुद्र में डूब गयी थी, उस समय मार्कण्डेयजी बच गए?
मार्कण्डेयजी बहुत बड़े तपस्वी है। तपस्या करते-करते बहुत समय (छः मन्वन्तर) व्यतीत हो गए थे। (मन्वन्तर के बारे में जाने के लिए यहाँ क्लिक करें)
इस सातवें मन्वन्तर में जब इन्द्र को इस बात का पता चला, तब वे उनकी तपस्या से भयभीत हो गए। इसलिये उन्होंने उनकी तपस्या में विघ्न डालना आरम्भ कर दिया। इन्द्र ने मार्कण्डेयजी की तपस्या में विघ्न डालने के लिए उनके आश्रम पर गन्धर्व, अप्सराएँ, कामदेव, वसन्त, लोभ और मद को भेजा लेकिन वे लोग उनको तपस्या से भ्रष्ट न कर सके और भाग गए।
एक दिन उनके सामने भगवान नर-नारायण प्रकट हुए। मार्कण्डेय मुनि ने उनकी पूजा की तब भगवान नर-नारायण ने प्रसन्न होकर मार्कण्डेयजी से कहा कि —‘मुझसे वरदान माँगो’
मार्कण्डेयजी ने कहा कि — ‘मैं आपकी वह माया देखना चाहता हूँ, जिससे सभी लोग मोहित हो रहे हैं’ तब नर-नारायण ने मुसकराते हुए कहा—‘ठीक है, ऐसा ही होगा”
एक दिन, सन्ध्या के समय पुष्पभद्रा नदी के तट पर मार्कण्डेय मुनि भगवान् की उपासना कर रहे थे। उसी समय एकाएक बड़े जोर की आँधी चलने लगी। बिजली चमक-चमक कर कड़कने लगी और मोटी-मोटी धाराएँ पृथ्वी पर गिरने लगीं।
मार्कण्डेय मुनि को ऐसा दिखायी पड़ा कि चारों ओरसे चारों समुद्र समूची पृथ्वी को निगलते हुए उमड़े आ रहे हैं। समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उठ रही हैं, उस समय बाहर-भीतर, चारों ओर जल-ही-जल दीखता था।
पृथ्वी, अन्तरिक्ष, स्वर्ग, ज्योतिर्मण्डल (ग्रह, नक्षत्र एवं तारों का समूह) और दिशाओं के साथ तीनों लोक जल में डूब गये। बस, उस समय एकमात्र महामुनि मार्कण्डेय ही बच रहे थे।
उस समय वे यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ भाग-भाग कर अपने प्राण बचाने की चेष्टा कर रहे थे। भटकते-भटकते उन्हें सैकड़ों-हजारों ही नहीं, लाखों-करोड़ों वर्ष बीत गए।
एक बार उन्होंने एक छोटा-सा बरगदका पेड़ देखा। उस पेड़ में एक डाल पर कुछ पत्तों पर एक बड़ा ही सुन्दर नन्हा-सा शिशु लेट रहा था। वह शिशु अपने दोनों कर-कमलों से एक चरणकमलको मुखमें डालकर चूस रहा था। मार्कण्डेय मुनि यह दिव्य दृश्य देखकर अत्यन्त विस्मित हो गए।
मार्कण्डेय मुनि उस शिशु से ‘तुम कौन हो’ यह बात पूछने के लिये उसके सामने गए। अभी मार्कण्डेयजी पहुँच भी न पाये थे कि उस शिशुके श्वास के साथ उसके शरीर में घुस गए।
उस शिशु के पेटमें जाकर उन्होंने सब-की-सब वही सृष्टि देखी, जैसी प्रलय के पहले उन्होंने देखी थी। वे वह सब विचित्र दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने उस शिशु के उदरमें आकाश, अन्तरिक्ष, पर्वत, समुद्र, द्वीप, दिशाएँ, देवता, दैत्य, वन, देश, नदियाँ, पंचमहाभूत, उनसे बने हुए प्राणियोंके शरीर तथा पदार्थ, अनेक युग और कल्पों के भेदसे युक्त काल आदि सब कुछ देखा। वही पुष्पभद्रा नदी, उसके तटपर अपना आश्रम और वहाँ रहनेवाले ऋषियों को भी मार्कण्डेयजी ने देखा।
देखते-देखते ही वे उस शिशु के श्वास के द्वारा ही बाहर आ गये और फिर प्रलयकालीन समुद्र में गिर पड़े और फिर उन्होंने देखा कि समुद्र के बीच में वही बरगद का पेड़ ज्यों-का-त्यों है और उसमें वही शिशु सोया हुआ है।
वह समझ गए कि यह और कोई नहीं भगवान विष्णु ही है। इसलिए वह उस शिशु से आलिंगन करने के लिए आगे बढ़े। परंतु भगवान वहाँ से ग़ायब हो गए।
भगवान के ग़ायब होते ही वह बरगद का वृक्ष तथा प्रलयकालीन दृश्य और जल भी तत्काल ग़ायब हो गया और मार्कण्डेय मुनि ने देखा कि मैं तो पहले के समान ही अपने आश्रम में बैठा हुआ हूँ।
मार्कण्डेय मुनि ने जो दृश्य देखा वह कल्प के अन्त में होने वाले नैमित्तिक प्रलय के समान था। पर वह असली प्रलय नही था, विष्णु भगवान की माया का वैभव था और सिर्फ़ उन्हींके लिए था, सब लोगों के लिए नहीं!
तो इस तरह जब प्रलय ने सारे जगत्को निगल लिया, उस समय भी मार्कण्डेय ऋषि बचे रहे।
आदि-पुरुष परब्रह्म परमात्मा भगवान विष्णु इसी माया से जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते है। वह योगमाया ही दुर्गा, भद्रकाली, चण्डिका, अम्बिका नामों से जानी जाती है और उस माया से ही हम सब लोग मोहित हो रहे हैं।
(इस लेख का स्रोत भागवत पुराण है)
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अदभूत लेखन शौली और ज्ञान प्राप्त करने का उम्दा श्रोत
इस अपार स्नेह के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रभु भगवान श्रीविष्णु के द्वारा माया का अद्भुत निरूपण हमारे सामने संक्षिप्त में लाने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं । हरि ऊं ।
Thanks, Priyam! Hari Om
Good in details explained about the topic.
Thanks Sahdevsinh!
अदभुत ।
धन्यवाद